हिमाचल प्रदेश: स्कूलों में शारीरिक दंड पर पूर्ण प्रतिबंध, उल्लंघन पर होगी कड़ी कार्रवाई
शिमला: हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य के सभी स्कूलों में विद्यार्थियों को शारीरिक दंड देने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। प्रारंभिक शिक्षा निदेशालय ने शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम का हवाला देते हुए प्रदेश के सभी जिला शिक्षा उपनिदेशकों को इस संबंध में सख्त निर्देश जारी किए हैं। यदि किसी भी स्कूल में विद्यार्थियों को शारीरिक दंड देने की घटना सामने आती है, तो संबंधित स्कूल प्रभारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
शारीरिक दंड पर शिक्षा विभाग की सख्ती
हाल ही में प्रदेश के कुछ स्कूलों में विद्यार्थियों को शारीरिक दंड देने की घटनाएं सामने आई थीं, जिन पर प्रारंभिक शिक्षा निदेशालय ने कड़ा संज्ञान लिया है। शिक्षा निदेशक आशीष कोहली ने कहा कि विद्यार्थियों को अनुशासित करने के लिए शारीरिक दंड देना एक व्यापक रूप से हानिकारक और अस्वीकार्य तरीका है। यह न केवल शिक्षा के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है, बल्कि बच्चों की सुरक्षा और मानसिक विकास को भी बाधित करता है।
उन्होंने स्पष्ट किया कि शिक्षकों को बच्चों के साथ संवेदनशीलता से पेश आना चाहिए और अनुशासन बनाए रखने के लिए वैकल्पिक एवं सकारात्मक तरीकों को अपनाना चाहिए। यदि कोई शिक्षक शारीरिक दंड का सहारा लेता है, तो इसे गंभीर अनुशासनहीनता माना जाएगा और उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
कानूनी प्रावधान और आरटीई अधिनियम
शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम 2009 की धारा 17 (1) और (2) के तहत स्कूलों में शारीरिक दंड स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित है। अधिनियम के अनुसार:
1. धारा 17(1): कोई भी शिक्षक या स्कूल स्टाफ किसी भी विद्यार्थी को शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित नहीं कर सकता।
2. धारा 17(2): यदि कोई शिक्षक या स्कूल प्रशासन इस नियम का उल्लंघन करता है, तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
शिक्षा निदेशक ने कहा कि इन कानूनी प्रावधानों के बावजूद कुछ स्कूलों में शारीरिक दंड के मामले सामने आए हैं, जो कि न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है।
शारीरिक दंड के दुष्प्रभाव
शिक्षाविदों और बाल विकास विशेषज्ञों का मानना है कि शारीरिक दंड बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा नकारात्मक प्रभाव डालता है। अनुसंधानों से यह स्पष्ट हुआ है कि:
शारीरिक दंड से बच्चों में भय, असुरक्षा और विद्रोही स्वभाव विकसित होता है।
इससे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचती है, जिससे वे शिक्षा प्रणाली से दूर हो सकते हैं।
कुछ बच्चों में यह आक्रामकता और हिंसा की प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है।
दीर्घकालिक रूप से यह बच्चों की सीखने की क्षमता और आत्मविश्वास को कमजोर करता है।
शिक्षा विभाग का मानना है कि स्कूलों में बच्चों को अनुशासित करने के लिए सकारात्मक और प्रेरणादायक तरीकों को अपनाया जाना चाहिए, जिससे वे भयमुक्त वातावरण में शिक्षा ग्रहण कर सकें।
शिक्षा विभाग की चेतावनी
शिक्षा निदेशक आशीष कोहली ने स्पष्ट किया कि यदि कोई शिक्षक या स्कूल प्रशासन इस नियम का उल्लंघन करता पाया गया, तो स्कूल प्रमुख और संबंधित शिक्षक के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
उन्होंने कहा, "हमारा उद्देश्य विद्यार्थियों को एक सुरक्षित और सकारात्मक वातावरण प्रदान करना है, जहां वे बिना किसी डर के अपनी शिक्षा पूरी कर सकें। स्कूलों को यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षण प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की हिंसा या दंड का प्रयोग न किया जाए।"
विद्यालयों के लिए निर्देश
शिक्षा विभाग ने सभी स्कूलों को निम्नलिखित निर्देश जारी किए हैं:
1. शारीरिक दंड के सभी रूपों पर पूरी तरह रोक लगा
ई जाए।
2. **शिक्षकों को छात्रों को अनुशासित
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