शिमला: गुड़िया केस के सूरज लॉकअप हत्याकांड में 8 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद, पूर्व IG समेत दोषियों पर एक लाख जुर्माना
जिला शिमला के कोटखाई थाने में हुए बहुचर्चित गुड़िया दुष्कर्म और हत्याकांड के बाद लॉकअप में हुई सूरज की हत्या के मामले में सीबीआई की चंडीगढ़ अदालत ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने इस मामले में तत्कालीन विशेष जांच टीम (एसआईटी) के प्रमुख और सदस्यों को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई है। इसके साथ ही सभी दोषियों पर 1-1 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।
फैसले में दोषी पाए गए पुलिस अधिकारी और कर्मी
सीबीआई अदालत ने इस मामले में तत्कालीन आईजी जहूर हैदर जैदी, डीएसपी मनोज जोशी, सब इंस्पेक्टर राजिंद्र सिंह, एएसआई दीपचंद शर्मा, मुख्य आरक्षी मोहन लाल, सूरत सिंह, रफी मोहम्मद और कांस्टेबल रनीत सटेटा को दोषी मानते हुए सजा सुनाई। अदालत ने इन पुलिसकर्मियों को हिरासत में लेकर चंडीगढ़ की बड़ैल जेल भेज दिया।
ऐतिहासिक फैसला, पहली बार एसआईटी पर कार्रवाई
यह फैसला हिमाचल प्रदेश के इतिहास में अपनी तरह का पहला मामला है, जब किसी जांच टीम (एसआईटी) के प्रमुख और उसके सदस्यों को अदालत ने दोषी ठहराकर उम्रकैद की सजा सुनाई है। इससे पहले 18 जनवरी को अदालत ने गवाहों के बयान और सबूतों के आधार पर सभी आरोपियों को दोषी करार दिया था, जिसके बाद सोमवार को सजा का ऐलान हुआ।
मामले की पृष्ठभूमि
4 जुलाई 2017 को शिमला के कोटखाई इलाके में स्कूल से घर लौट रही एक छात्रा (गुड़िया) लापता हो गई थी। कुछ दिनों बाद उसका शव जंगल में मिला। इस मामले ने पूरे राज्य में हड़कंप मचा दिया। पुलिस ने इस मामले में सूरज सहित अन्य संदिग्धों को गिरफ्तार किया था। हालांकि, 16 जुलाई 2017 को कोटखाई थाने के लॉकअप में सूरज की हत्या हो गई।
एम्स की रिपोर्ट और सीबीआई जांच
सूरज के शरीर पर 20 से ज्यादा चोटों के निशान पाए गए थे। एम्स के डॉक्टरों के बोर्ड की रिपोर्ट में यह पुष्टि हुई थी कि सूरज को हिरासत में टॉर्चर किया गया था। सीबीआई जांच में भी यह साबित हुआ कि पुलिसकर्मियों के टॉर्चर के कारण सूरज की मौत हुई।
पूर्व एसपी डीडब्ल्यू नेगी बरी
इस मामले में शिमला के तत्कालीन एसपी डीडब्ल्यू नेगी पर भी आरोप लगे थे, लेकिन सबूतों के अभाव में उन्हें बरी कर दिया गया।
जनता का आक्रोश और न्याय की उम्मीद
गुड़िया दुष्कर्म और सूरज की लॉकअप हत्या के मामलों ने जनता को झकझोर दिया था। इस फैसले से जनता को न्याय की उम्मीद जगी है और यह संदेश गया है कि कानून से ऊपर कोई नहीं है, चाहे वह पुलिस अधिकारी ही क्यों न हो।
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