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शिमला: भूंडा महायज्ञ में 70 वर्षीय सूरत राम निभाएंगे रोमांचक मुख्य बेड़ा रस्म

हिमाचल में सांसें थमा देने वाला भूंडा महायज्ञ: 70 वर्षीय बुजुर्ग ने निभाया जोखिम भरा कारनामा

रोहड़ू: हिमाचल प्रदेश के रोहड़ू की स्पैल घाटी में आयोजित भूंडा महायज्ञ में एक बार फिर सांसें थम गईं। 40 वर्षों के बाद आयोजित इस महायज्ञ के तीसरे दिन, 70 वर्षीय बुजुर्ग सूरत राम ने एक बार फिर 400-500 मीटर लंबी रस्सी पर फिसलकर महाआहुति का जोखिम भरा कारनामा अंजाम दिया।

यह कारनामा इतना खतरनाक है कि देखने वालों की धड़कनें रुक सी जाती हैं। सूरत राम ने इस कारनामे को नौवीं बार अंजाम दिया है। इस दौरान उन्होंने एक स्वयं निर्मित लकड़ी की काठी का उपयोग किया।



शिखा पूजन और फेर रस्म के साथ हुई शुरुआत

महायज्ञ के दूसरे दिन शिखा पूजन और फेर रस्म के साथ आयोजन की शुरुआत हुई। इस दौरान देवता बकरालू के नए मंदिर की छत पर पूजा-अर्चना की गई।

रस्सी को पहाड़ी की चोटी से बांधा जाता है

महायज्ञ के लिए एक विशेष रस्सी का उपयोग किया जाता है। इस रस्सी को कई दिनों तक पानी में रखा जाता है और फिर इसे एक पहाड़ी की चोटी से दूसरी पहाड़ी की चोटी से बांधा जाता है।

बेड़ा को रस्सी पर बिठाकर छोड़ा जाता है

तीसरे दिन बेड़ा (सूरत राम) को इस रस्सी पर एक काठी पर बिठाकर छोड़ा जाता है। उसके पैरों में बराबर वजन बांध दिया जाता है और वह इस रस्सी पर फिसलता हुआ पहाड़ी की तलहटी पर पहुंच जाता है।

अदालत के आदेश के बाद पुलिस नैट लगाती है

हालांकि अदालत के आदेश के बाद अब पुलिस इस दौरान सुरक्षा के लिए नैट लगाती है, लेकिन आज तक कभी भी कोई हादसा नहीं हुआ है।

एक पुरानी परंपरा

यह परंपरा शिमला जिले के रामपुर और रोहड़ू-जुब्बल क्षेत्र में कई पीढ़ियों से चली आ रही है। सूरत राम और उनके भाई कंवर सिंह इस परंपरा को कई वर्षों से निभा रहे हैं।

अनुष्ठान के दौरान कई प्रतिबंध

अनुष्ठान के दौरान कई प्रतिबंध लगाए जाते हैं। इस दौरान बाल और नाखून नहीं काटे जाते हैं और कई अन्य नियमों का पालन किया जाता है।

एक जोखिम भरा कारनामा

भूंडा महायज्ञ एक बेहद जोखिम भरा कारनामा है, लेकिन यह हिमाचल की सांस्कृतिक विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह कारनामा धर्म और आस्था से जुड़ा हुआ है और इसे लोग बड़े उत्साह के साथ देखते हैं।

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